Thursday, March 15, 2012

बाड़मेर राजस्थान का तेल का कुआ


बाड़मेर    कला व हस्तशिल्प की ड्योडी    राजस्थान का तेल का कुआ

शीव         à    तेल खोज के लिए प्रसिद्ध
नाकोडाजी    à    जैन सम्प्रदाय का तीर्थ स्थल
गुढामलानी    à    आलमजी का धोरा
मुनाबाव      à    भारत का सीमांत रेलवे स्टेशन
गिरल        à    पहला लिग्नाइट बिजलीघर






















अतीत के मंजर

सुनहरी रेत पर बसा छोटा सा मरुस्थलीय नगर बाड़मेर में आपका स्वागत है. चलो आज हम घूमने के लिए चलते है इस राजस्थानी शहर बाड़मेर .यह अपने समस्त रंगो , उत्पाद व परम्परा से जुड़ा अपने आप में लघु राजस्थान के समान है. इसकी स्थापना ११ वीं शताब्दी के मध्य में यहां धरणीधर नामक एक प्रख्यात परमार राजा हुआ. जसके तीन पुत्रो में से एक पुत्र का नाम बागभट्ट या बाहड राव के नाम पर जूना बाड़मेर बसाया गया . भीमजी रतनावट ने वि.स. १६४२ में वर्तमान बाड़मेर बसाया कहा जाता है कि जूना बाड़मेर के लोगो ने ही ने बाड़मेर नगर का निर्माण किया. बाड़मेर का अर्थ है बाड़ का पहाड़ी किला. दूर-दूर तक फैले रेतीले टीले पहाड से भी ऊँचे लगते है और इसी कारण इसे पहाड़ी किले के रूप में भी जाना जाता है.

१२वीं सदी में मलानी कहलाने वाले ,वर्तमान बाड़मेर जिला, राजस्थान के संयुक्त राज्यों में जोधपुर के १९४९ में विलय होने के बाद स्थापित हुआ था, यह प्राचीन आदर्शो का समूह है मालानी शिव, पचपदरा सिवाना और चौहटन क्षेत्र. बंजर भूमि, रूखे मौसम व उबड-खाबड भू-भाग वाला बाड़मेर अपने समृद्ध हस्तशिल्प , नृत्य व संगीत के लिए प्रसिद्ध है. कभी प्राचीन ऊंट व्यापार मार्ग वाला यह नगर अब लकड़ी के काम, मिट्टी के बर्तन, कालीन, बारीक़ कढाई के काम, छापे के कपडो व रंगबिरंगे पारम्परिक पोशाको का केन्द्र है. लाल व गहरे नीले रंगो में ज्यामितीय अजरक छापो के लिए यह विशेष रूप से प्रसिद्ध है जो सूर्य से बचाव के लिए उत्तम माना जाता है.

सामन्य जानकारी
क्षेत्रफल १५ वर्ग किमी०
तपमान : गर्मी : ४३-२७ डिसे, सर्दी : २६ से १० डिसे, वर्षा : २८ सेंटीमीटर
उत्तम मौसम : अगस्त-मार्च
यहां पर आने के लिए यदि आप वायु मार्ग से आना चाहते हो तो जोधपुर का हवाई अड्डा सबसे नजदीक है, यदि इससे न आकर आप रेल या बस से आना चाहते हो तो उसकी भी सुविधा है. ये स्थान सभी जगहों से जुड़ा है.

बाड़मेर में ही पर्यटकों को ग्रामीण राजस्थान की पुरी झलक मिलती है. बारीक़ लोक चिन्हों से सज्जित मिट्टी के पुते घरों वाले रास्ते में मिलते छोटे-छोटे गाँव और रंगबिरंगे कपड़े पहने लोग तो मन मोह लेते है ऐसा लगता है की यहां पर बस जाये और उनके इस दृश्य को देखते है.ये थी इसकी कुछ सामन्य जानकारी अब हम आगे चलते है और देखते है इसमें देखने योग्य दर्शनीय स्थल कौनसे है.

मुख्य दर्शनीय स्थल

















मालानी
१२वीं सदी में कभी मालानी कहलाने वाल वर्तमान बाड़मेर जिला राजस्थान के संयुक्त राज्यों में जोधपुर के १९४९ में विलय होने के बाद स्थापित हुआ था. लूनी नदी के किनारे स्थित खेड अतीत में राठौर राजपूतो की राजधानी थी. यहां श्री रणछोड़जी का मन्दिर दर्शनीय है. जसोल : मालानी राज्य का पुराना गाँव को जसोल नाम राठौर के उपवंश के वंशजों द्वारा मिला. यहां पर जैन और हिंदू मन्दिर देखने योग्य है. हिंदू मन्दिर परिष्कृत शिलालेखों से अलंकृत है जिन्हें भगवान महावीर के जैन मन्दिर से लाया गया था.

किराडू
-बाड़मेर तहसील में हाथमा गाँव के पास एक पहाड़ी की तलहटी में एक छोटा सा मन्दिर किराडू है. यहां 1161 के शिलालेख के अनुसार यह स्थल पहले किराटकूप के नाम से जाना जाता था. यहां भगवान विष्णु और शिव के मन्दिर है जो कलाप्रेमियों को अपने और आकर्षित करते है.

सिवाना का दुर्ग
-(संकटकाल में मारवाड़ राजाओं की शरणस्थली) दसवीं शताब्दी में इस दुर्ग का निर्माण परमार राजा भोज के पुत्र वीर नारायण ने करवाया था. यह गिरी दुर्ग है. सिवाना दुर्ग में प्रथम शाका सन् 1310 में शीतलदेव के शासन काल में हुआ था. अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने तब सिवाना दुर्ग को घेर लिया था. यहीं पर दूसरा शाका कल्लाजी राठौर के शासन काल में हुआ.अकबर की सेना ने मोटा राजा उदयसिंह के नेतृत्व में तब दुर्ग पर घेरा डाला था.

कोटड़ा का किला
रेगिस्तानी अंचल में एक छोटी सी भाखरी पर जैसलमेर के किले के आकार का यह किला बाड़मेर की शिव तहसील के कोटड़ा गाँव में बना हुआ है.

खेड
राठौर वंश के संस्थापक राव सिन्हा ने अपने पुत्र के साथ गुहिल राजपूतो को हरा कर खेड को जीत लिया.जर्जर दीवार से घिरा रणछोड़जी का मन्दिर है जिसके द्वार पर खड़ी गरुड कि मूर्ति भवन के पहरेदार के रूप में स्थापित है.







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